ग्रीन एनर्जी के उत्पादन में सोलर पॉलिसी बनी बड़ी बाधा, MSME व स्टार्टअप पर भी छाया संकट
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लखनऊ [रूमा सिन्हा]। रिन्यूवेबिल एनर्जी (आरई) में सौर ऊर्जा का उत्पादन सबसे ज्यादा किया जाता है । ग्रीन एनर्जी वह भी सस्ती दरों में इस बात को आज ना केवल सरकार बल्कि लोग भी समझ चुके हैं। यही वजह है कि जहां एक तरफ केंद्र सरकार द्वारा सौर ऊर्जा उत्पादन को लगातार प्रोत्साहित किया जा रहा है । वहीं घरेलू उपभोक्ताओं में भी इस और जबरदस्त रुझान बढ़ा है । पर्यावरण के साथ-साथ जेब के लिए फायदे का सौदा साबित हो रही सौर ऊर्जा के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2022 तक 175 गीगावॉट के उत्पादन का लक्ष्य तय किया है, लेकिन उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग द्वारा बनाई गई सोलर पॉलिसी इसमें बड़ी बाधा साबित हो रही है। यही नहीं, इस उद्योग से बड़ी संख्या में जुड़े सूक्ष्म,लघु व स्टार्टअप पर भी संकट खड़ा हो गया है। एक तरफ सरकार लघु उद्योगों को प्रोत्साहित करने की बात कर रही है वहीं सौर ऊर्जा के क्षेत्र में लगे तमाम उद्यमी निराश हैं।
आयोग द्वारा बीते वर्ष जनवरी में जारी की गई सोलर पॉलिसी में यह शर्त रखी गई है कि केवल घरेलू व कृषि क्षेत्र के उपभोक्ताओं को नेट मीटङ्क्षरग की सुविधा दी जाएगी । वही सरकारी अथवा गैर सरकारी संस्थान, प्रतिष्ठान, होटल आदि में ग्रास मीटङ्क्षरग की सुविधा ही होगी। आशय यह है कि यदि यह प्रतिष्ठान सौर ऊर्जा से बिजली का उत्पादन करते हैं तो उन्हें सारी बिजली ग्रिड के जरिए सरकार को सस्ती दरों पर देनी होगी। वह सीधे सोलर पावर प्लांट द्वारा बनाई गई बिजली का उपयोग नहीं कर सकेंगे बल्कि उन्हें अपने लिए सरकार से महंगी दरों पर बिजली खरीदना होगी। आयोग के इसी आदेश को सौर ऊर्जा उत्पादन में बड़ी बाधा के रूप में देखा जा रहा है।
बताते चलें कि केंद्र सरकार द्वारा केवल घरेलू उपभोक्ताओं को ही सब्सिडी का लाभ दिया जा रहा है ऐसे में सरकारी अथवा गैर सरकारी जो भी प्रतिष्ठान सोलर पावर प्लांट लगाते हैं उन्हें अपनी जेब से ही पूरी धनराशि वह करनी होती है।यही नहीं,जो बिजली वह बनाएंगे उसे भी उपयोग नहीं कर सकेंगे।वहीं जिस बिजली की खपत करेंगे उसे कहीं अधिक कीमत पर उन्हें सरकार से भुगतान कर लेना होगा। इस नियम के चलते सौर ऊर्जा का उत्पादन करने वाले अपने को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।
सौर ऊर्जा से जुड़े उद्यमी अशोक सक्सेना ने 19 अप्रैल को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी पत्र लिखा है। उनका कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा तय किया गया लक्ष्य का इस नियम के चलते पूरा होना मुश्किल है । इससे सौर ऊर्जा क्षेत्र में काम कर रहे सूक्ष्म, लघु व स्टार्ट अप का काम कर रहे उद्यमियों के समक्ष बड़ा संकट खड़ा हो गया है। कारण यह है कि लाखों की धनराशि खर्च कर सौर ऊर्जा प्लांट स्थापित करने वाले इसे नुकसान का सौदा बता रहे हैं। उनका कहना है कि पहले लाखों की धनराशि खर्च कर सौर ऊर्जा प्लांट की स्थापना करें। प्लांट द्वारा तैयार बिजली सरकार को सस्ती दरों पर दें और फिर स्वयं अपने लिए सरकार से तिगुनी-चौगुनी कीमत पर बिजली खरीदें। यही वजह है कि सौर ऊर्जा उत्पादन का काम प्रदेश में हाशिए पर चला गया है। कहते हैं कि प्रदेश सरकार इस नियम को यदि नहीं बदलती तो आने वाले समय में तय लक्ष्य की प्राप्ति मुश्किल है। उनका सुझाव है कि सोलर पावर प्लांट के लिए सरकार भले ही कोई सब्सिडी न दे, लेकिन प्लांट लगाने वाले को अपनी जरूरत की बिजली खर्च करने की अनुमति दे साथ ही बची बिजली को सरकार सस्ती दरों पर खरीदे। इससे जहां प्लांट लगाने वाले को राहत मिलेगी वहीं सरकार को भी सस्ती दरों पर सौर ऊर्जा की आपूर्ति हो सकेगी जिससे राज्य कोष को राहत मिलेगी।
लगा रहे जीरो एक्सपोर्ट यूनिट
आशियाना स्थित एक कॉलेज में 10 किलो वाट का सोलर प्लांट लगाया गया है। इसमें जीरो एक्सपोर्ट यूनिट स्थापित की गई है। यानी जो सौर ऊर्जा तैयार होगी वह इस्तेमाल के बाद ग्रिड में न जाकर वेस्ट हो जाएगी। केवल यही कॉलेज नहीं, कई अन्य प्रतिष्ठान व कॉलेजेस भी जीरो एक्सपोर्ट यूनिट आधारित सोलर पावर प्लांट की स्थापना कर रहे हैं। यानी सोलर पावर प्लांट का ग्रिड से कोई कनेक्शन नहीं रहता। ना वह सरकार को कोई बिजली देंगे ना उनसे लेंगे। ऐसे में प्रश्न यह है कि कोरोना के चलते लंबे समय से बंद ऐसे सभी प्रतिष्ठानों द्वारा तैयार बिजली वेस्ट हो रही है। वह कहते हैं कि यह नेशनल लॉस है।