मजदूरों के सुख-दुःख का साथी पारले जी बिस्किट ने लॉकडाउन के दौरान तोड़ा 80 साल के बिक्री का रिकॉर्ड – MICRO SOLAR ENERGY
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मजदूरों के सुख-दुःख का साथी पारले जी बिस्किट ने लॉकडाउन के दौरान तोड़ा 80 साल के बिक्री का रिकॉर्ड

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इससे पहले सुनामी और भूकंप के दौरान भी पारले-जी की बिक्री बढ़ी थी, लेकिन लॉकडाउन के दौरान जो बिक्री हुई वह अभूतपूर्व है।

मुंबई के पवई में रहकर निर्माण मजदूर का काम करने वाले रामलाल लॉकडाउन तीन के दौरान किसी तरह ट्रक से अपने घर लौटकर उत्तर प्रदेश के देवरिया आए। उनके साथ उनकी पत्नी और डेढ़ साल की बच्ची प्रीति भी थी। पांच दिन की इस यात्रा में रामलाल और उनकी पत्नी को सरकारी और निजी वालंटियर्स द्वारा बांटा जा रहा खाना तो मिल जा रहा था, लेकिन डेढ़ साल की प्रीति के लिए दूध नहीं मिल पा रहा था। बकौल रामलाल पांच दिन की इस यात्रा के दौरान उन्हें सिर्फ दो बार दूध मिला, बाकी मां के दूध और पारले जी से उन्होंने काम चलाया। रामलाल ने बताया कि यात्रा में थकावट और पर्याप्त भोजन ना मिलने से मां का दूध भी सही तरीके से नहीं बन रहा था, इस दौरान पारले बिस्कुट से काफी मदद मिली। गांव कनेक्शन की टीम को जब रामलाल और उनका परिवार मिला, तो प्रीति पारले जी बिस्किट के पैकेट से खेल रही थी। लॉकडाउन के दौरान पैदल, साइकिल और ट्रक से आ रहे मजदूरों का भी यह बिस्किट एक प्रमुख सहारा बना।

हाईवे पर लोगों की सेवा दे रहे सेवादारों के लिए भी यह बहुत मददगार साबित हुआ। यह सैकड़ों किलोमीटर चलकर भूखे आ रहे मजदूरों के लिए बहुत सस्ता और सुलभ विकल्प था। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार अप्रैल और मई महीने में पारले-जी बिस्किट की रिकॉर्ड बिक्री हुई है। पारले के अधिकारियों ने स्वयं इसकी पुष्टि की है। पारले प्रोडक्ट्स के वरिष्ठ अधिकारी मयंक शाह ने मीडिया को बताया कि लॉकडाउन के दौरान पारले कंपनी की कुल बाजार हिस्सेदारी में क़रीब 5 फीसदी का इज़ाफा हुआ है। इस वृद्धि का एक बड़ा हिस्सा यानी 80 से 90 फीसदी हिस्सा पारले जी बिस्किट की बिक्री से आया है। शाह के मुताबिक, ‘बीते 30-40 साल में हमने ऐसी वृद्धि पहले कभी नहीं देखी।’ हालांकि पारले प्रोडक्ट्स ने पारले जी बिस्किट की बिक्री के आंकड़ों को देने से मना कर दिया, लेकिन द इकोनॉमिक्स टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस साल मार्च, अप्रैल और मई में पारले जी की बिक्री पिछले 80 साल में सबसे अधिक रही। मयंक शाह ने बताया, “इस महामारी के दौरान राहत पैकेट बांटने वाले एनजीओ और सरकारी एजेंसियों ने भी पारले-जी बिस्किट को तरजीह दी, क्योंकि यह बहुत किफायती है और सिर्फ दो रुपये में मिल जाता है। इसके साथ ही यह ग्लूकोज का अच्छा स्रोत है। इससे पहले सुनामी और भूकंप के दौरान भी पारले-जी की बिक्री बढ़ी थी, लेकिन लॉकडाउन के दौरान जो बिक्री हुई वह अभूतपूर्व है।

लॉकडाउन के दौरान पिछले तीन महीने में जब सभी लोग अपने घर पर हैं, हर तरह के बिस्किट की बिक्री बढ़ी है। इसमें ब्रिटानिया टाइगर, बॉरबन और मारीगोल्ड बिस्किट भी शामिल हैं। लेकिन सस्ता और उपयोगी होने के कारण पारले जी की बिक्री में रिकॉर्ड वृद्धि दर्ज की गई। मयंक शाह ने बताया, “दूसरे लोगों ने भी अच्छा प्रदर्शन किया है। मगर पारले जी की जो रिकॉर्ड बिक्री हुई, वह कंपनी के इतिहास के सुनहरे दिनों में से एक है।” वहीं ब्रिटानिया के महाप्रबंधक वरूण बेरी ने भी कहा कि पिछले दो महीनों में उनकी बिक्री काफ़ी बढ़ी है। उपभोक्ता सामान्य दिनों में स्ट्रीट फ़ूड, रेस्तरां, मॉल, कहीं भी जाकर खाना खाते थे। लेकिन लॉकडाउन के कारण अब जब खपत घर में ही है, उससे बिस्किट, नमकीन आदि पैक्ड सामानों की अधिक बिक्री हो रही है।

इससे पहले साल 2019 में पारले प्रोडक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड आर्थिक मंदी से जूझ रहा था। भारत में बिस्किट बनाने वाली बड़ी कंपनियों में से एक पारले ने ग्रामीण क्षेत्रों में मांग में कमी आने का हवाला देते हुए उत्पादन में कटौती और 10 हजार कर्मचारियों की छंटनी करने की बात कही थी। तब मयंक शाह ने कहा था, “2017 में जीएसटी लागू होने के बाद से पारले जी बिस्किट की बिक्री में कमी आ रही है। कर बढ़ने की वजह से कंपनी के सबसे ज्यादा बिकने वाले 5 रुपये के बिस्किट पर असर पड़ा है, कंपनी को प्रति पैकेट बिस्किट कम करने पड़ रहे हैं। इससे बिस्किट की मांग कम होती जा रही है।” आपको बता दें कि पारले की स्थापना 1929 में हुई थी और इसमें लगभग एक लाख कर्मचारी काम करते हैं। सामान्य दिनों में हर रोज करीब 40 करोड़ पारले जी बिस्किट का उत्पादन होता है। कंपनी के भारत में कुल 135 मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट हैं, जिसमें कंपनी के 10 प्लांट और 125 थर्ड पार्टी प्लांट (सहयोगी प्लांट) हैं। मुंबई में स्थित इस कंपनी का सालाना राजस्व 4 अरब डॉलर से भी अधिक है।